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हिंदी कहानियां - भाग 3

किसी वन में एक गीदड़ रहता था। एक दिन भूख के कारण वह जंगल में घूम रहा था लेकिन उसे कुछ नहीं मिला। घूमते घूमते वह शहर पहुँच गया।


जैसे ही वह शहर पहुँचा तो अचानक से बहुत से कुत्तों ने भौंकना शुरु दिया। डर के मारे गीदड़ भागने लगा। भागते-भागते वह एक घर में घुस गया। अंदर अँधेरा था। 

अरे ! यह क्या हुआ ? छप्प से किसी के गिरने की आवाज आई। दरवाजे के पास एक टब पड़ा था जिसमें पानी भरा था। गीदड़ उसमें जा गिरा। ओह ! मगर यह नीले रंग का पानी था और वह घर एक धोबी का था जिसने कपड़ों को रंगने के लिए रखा था। गीदड़ को ढूंढ़ रहे कुत्ते उसे ना देखकर वापिस चले गए। 

कुत्तों के वापिस जाते ही गीदड़ टब से बाहर निकला तो उसने क्या देखा कि उसका शरीर तो नीले रंग का हो गया है। अब गीदड़ वन की ओर चल पड़ा। 

वन में नीले गीदड़ को देख कर सब जानवर डर कर इधर-उधर भागने लगे। उन्हें डरते हुए देख गीदड़ को एक तरकीब सूझी। उसने सब जानवरों को कहा ” अरे ! तुम सब डरो नहीं। मैं तुम्हारा राजा हूँ। मुझे भगवान ने तुम सब की रक्षा के लिए भेजा है। ” इस तरह सब जानवर उसे भगवान का भेजा हुआ राजा समझकर उसकी सेवा करने और खाने-पीने का ध्यान रखने लगे। 

कुछ समय बाद एक दिन वहाँ गीदड़ों के एक झुँड आ पहुँचा और अपनी भाषा में बातचीत करने लगा। बहुत दिनों बाद किसी को अपनी भाषा में बोलते सुन गीदर राजा अपने को रोक नहीं पाया और उसके मुँह से निकल पड़ा । “अरे ! यह तो मेरे ही परिवार के लोग हैं। ” यह जान कर खुशी के मारे वह भी उसी आवाज में बोलने लगा।

उसकी आवाज सुनकर सब जानवर हैरान हो गए कि यह तो गीदड़ है। उन्हें पता लग गया कि गीदड़ ने उन्हें कैसे मूर्ख बनाया। बस फिर क्या था, सब ने मिलकर उसे मार दिया और उसे उसके धोखे की सजा दी। 

किसी ने ठीक ही कहा है –

स्वभाव से ही सब की पहचान होती है।

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